
Panchvarshiya Yojana
भारत के आर्थिक, सामाजिक और औद्योगिक विकास की नींव जिस नीति पर आधारित रही है, वह है पंचवर्षीय योजना (Panchvarshiya Yojana)। यह योजना भारत सरकार द्वारा बनाई गई एक प्रमुख रणनीतिक योजना है, जिसका उद्देश्य देश की समग्र प्रगति सुनिश्चित करना है। पंचवर्षीय योजनाएं (Five-Year Plans) भारत में योजनागत विकास का एक मुख्य उपकरण रही हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में संतुलित विकास पर बल देती हैं।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि पंचवर्षीय योजना क्या होती है, इसका इतिहास क्या है, अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएं बनी हैं, उनका उद्देश्य और प्रभाव क्या रहा है, साथ ही साथ 2017 के बाद इसकी जगह लेने वाली NITI Aayog (नीति आयोग) का क्या महत्व है।
पंचवर्षीय योजना क्या होती है? (What is Panchvarshiya Yojana)
पंचवर्षीय योजना एक आर्थिक एवं सामाजिक विकास की योजना होती है जिसे सरकार पाँच सालों के लिए बनाती है। इसका उद्देश्य होता है राष्ट्र के संसाधनों का सही और सुनियोजित उपयोग कर आर्थिक विकास को गति देना। यह योजना मुख्य रूप से योजना आयोग (Planning Commission) द्वारा तैयार की जाती थी जिसे अब नीति आयोग (NITI Aayog) ने बदल दिया है।
पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत सरकार विभिन्न क्षेत्रों को प्राथमिकता देती है जैसे – गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन, औद्योगिकीकरण, कृषि विकास, शिक्षा में सुधार, और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार। इन योजनाओं के माध्यम से सरकार यह तय करती है कि आगामी पांच वर्षों में किन क्षेत्रों में कितना निवेश होगा और किन क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का इतिहास (History of Five-Year Plans in India)

भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत 1951 में प्रथम योजना के साथ हुई थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सोवियत संघ के मॉडल से प्रेरणा लेकर पंचवर्षीय योजना प्रणाली की शुरुआत की थी।
प्रथम Panchvarshiya Yojana (1951-1956)
यह योजना मुख्यतः कृषि और सिंचाई पर केंद्रित थी। इस दौरान भाखड़ा नांगल बांध, दामोदर घाटी परियोजना, और मुल्ला-पेरियार परियोजना जैसी बड़ी परियोजनाएं शुरू की गईं। इसका मुख्य उद्देश्य था – खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि, बाढ़ नियंत्रण और ग्रामीण विकास।
द्वितीय Panchvarshiya Yojana (1956-1961)
इस योजना को महालनोबिस मॉडल के आधार पर तैयार किया गया था और इसका ध्यान मुख्य रूप से उद्योगों के विकास पर केंद्रित था, खासकर भारी उद्योगों पर। इस्पात संयंत्रों की स्थापना, कोयला उत्पादन और ऊर्जा विकास इस योजना के प्रमुख क्षेत्र थे।
तृतीय Panchvarshiya Yojana (1961-1966)
इसका उद्देश्य था आत्मनिर्भरता प्राप्त करना और देश की रक्षा क्षमताओं को मजबूत बनाना। लेकिन इस योजना को 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 के भारत-पाक युद्ध और भीषण सूखे के कारण भारी झटका लगा, जिससे इसे असफल माना गया।
विशेष योजनाएं और वार्षिक योजनाएं
1966 से 1969 के बीच भारत में कोई पंचवर्षीय योजना लागू नहीं की गई। इसे “योजनातीत काल” (Plan Holiday) कहा गया। इस दौरान सरकार ने तीन वार्षिक योजनाएं बनाईं जो कृषि को पुनर्जीवित करने और कीमतों को स्थिर रखने पर केंद्रित थीं।
आगे की प्रमुख पंचवर्षीय योजनाएं और उनके उद्देश्य
चौथी Panchvarshiya Yojana (1969-1974)
इस योजना का लक्ष्य था “ग्रोथ विद स्टेबिलिटी”। इस दौरान हरित क्रांति (Green Revolution) को प्रोत्साहन मिला जिससे देश में खाद्यान्न उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई।
पाँचवीं योजना (1974-1979)
इसका मुख्य उद्देश्य था गरीबी उन्मूलन और आत्मनिर्भरता। इस योजना के तहत “गरीबी हटाओ” जैसे नारे और योजनाएं लाई गईं।
छठी योजना (1980-1985)
इस दौरान तकनीकी और आधुनिकरण पर जोर दिया गया। बैंकिंग सुधार, आईटी सेक्टर और उद्योग क्षेत्र में नई दिशा देने की कोशिश की गई।
सातवीं Panchvarshiya Yojana (1985-1990)
यह योजना प्रोडक्टिविटी, रोजगार और शिक्षा पर केंद्रित रही। जनसंख्या नियंत्रण और महिला सशक्तिकरण भी इसमें प्रमुख रूप से शामिल थे।
आठवीं Panchvarshiya Yojana (1992-1997)
यह योजना आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के लिए जानी जाती है। 1991 के आर्थिक संकट के बाद भारत ने अपने बाज़ार को दुनिया के लिए खोला और नवउदारवादी नीतियों को अपनाया।
आखिरी तीन पंचवर्षीय योजनाएं और नीति आयोग का गठन
ग्यारहवीं Panchvarshiya Yojana (2007-2012)
इस योजना का नारा था “तेज और समावेशी वृद्धि”। इसमें सामाजिक क्षेत्र जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला कल्याण पर विशेष बल दिया गया।
बारहवीं और अंतिम योजना (2012-2017)
यह योजना भारत की आखिरी पंचवर्षीय योजना थी। इसका उद्देश्य था “तेज, टिकाऊ और समावेशी विकास”। इस योजना के बाद योजना आयोग को विलीन कर नीति आयोग (NITI Aayog) की स्थापना की गई।
नीति आयोग का गठन और नई योजना प्रणाली
2015 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग (National Institution for Transforming India) की शुरुआत की। इसका उद्देश्य पंचवर्षीय योजना की “Top-Down Approach” को बदलकर “Bottom-Up Approach” को अपनाना था।
नीति आयोग अब लंबी अवधि की रणनीति तैयार करता है और राज्यों को उनके विशेष संसाधनों और आवश्यकताओं के अनुसार योजना बनाने के लिए स्वतंत्रता देता है।
पंचवर्षीय योजनाओं का भारत के विकास में योगदान
पंचवर्षीय योजनाओं ने भारत को एक गंभीर और योजनाबद्ध विकास मार्ग दिया। इन योजनाओं के माध्यम से भारत ने:
- हरित क्रांति और श्वेत क्रांति जैसे परिवर्तनकारी कदम उठाए।
- बड़े बाँध, ऊर्जा संयंत्र, और स्टील फैक्ट्रियों की स्थापना की।
- शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली को व्यापक रूप से मजबूत किया।
- गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में करोड़ों लोगों की मदद की।
- आईटी और सेवा क्षेत्र को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।
पंचवर्षीय योजनाओं की आलोचना
हालाँकि पंचवर्षीय योजनाओं ने बहुत कुछ दिया, परन्तु कई योजनाएं लक्ष्य से पीछे रह गईं, कारण थे:
- राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार
- क्रियान्वयन की कमज़ोरी
- भ्रष्ट तंत्र और लालफीताशाही
- कभी-कभी असंतुलित प्राथमिकताएं
इन कमियों ने ही नीति आयोग की स्थापना की दिशा में सरकार को प्रेरित किया।
निष्कर्ष: पंचवर्षीय योजनाओं की विरासत और आज का मार्ग
भारत की पंचवर्षीय योजनाएं एक ऐतिहासिक और विकासशील पहल रही हैं जिन्होंने देश को कृषि से लेकर डिजिटल युग तक पहुँचाया। आज भले ही पंचवर्षीय योजना की प्रणाली समाप्त हो गई हो, परंतु इसकी नींव पर ही आज भारत विश्व मंच पर एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में खड़ा है।
नीति आयोग अब राज्यों के साथ मिलकर विशेष रणनीतियाँ बना रहा है, और भारत तेजी से 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
इसलिए, पंचवर्षीय योजनाएं भारत के विकास का आधार स्तंभ रही हैं, और हमें इनसे मिली सीखों को आज की योजनाओं में समाहित करना चाहिए।